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Wheat crop: ठंड में गेहूं की पत्तियां पीली क्यों हो रही हैं? जानिए इसे रोकने के आसान तरीके

Wheat crop: ठंड में गेहूं की पत्तियां पीली क्यों हो रही हैं? जानिए इसे रोकने के आसान तरीके
गेहूं की पत्तियों का पीला
15 Dec, 2024 12:00 AM IST Updated Mon, 16 Dec 2024 04:47 PM

भारत में गेहूं की फसल मुख्य रूप से सर्दियों में उगाई जाती है। हालांकि, अत्यधिक ठंड (5 डिग्री सेल्सियस से नीचे) के कारण गेहूं की निचली पत्तियां पीली पड़ना एक आम समस्या है। यह स्थिति पौधों की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया और वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। उत्तर भारत में यह समस्या खासतौर पर 25 दिसंबर के आसपास अधिक देखी जाती है।

इस समस्या का सामना विशेष रूप से उन खेतों में होता है जहां पराली जलाने की प्रथा अपनाई गई हो। पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों की संख्या में भारी कमी हो जाती है, जो पौधों को पोषण देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि आपके खेत की गेहूं की फसल भी इस समस्या से प्रभावित है, तो आइए जानते हैं इसके कारण और प्रबंधन के प्रभावी उपाय।

गेहूं की निचली पत्तियों के पीले होने के कारण क्या हैं:

अत्यधिक ठंड का प्रभाव: जब तापमान 5 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है, तो अत्यधिक ठंड में मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव निष्क्रिय हो जाते हैं। इन सूक्ष्मजीवों का प्रमुख कार्य मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्वों को घुलनशील बनाना और उन्हें पौधों तक पहुंचाना है, ताकि पौधे स्वस्थ रहें और उन्हें आवश्यक पोषण मिल सके।

पराली जलाने का प्रभाव: पराली जलाने से खेत की मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या में भारी कमी हो जाती है, जिससे पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध कराने की प्रक्रिया बाधित होती है। यह समस्या खेतों की उर्वरता को भी प्रभावित करती है।

पौधों के पोषक तत्वों का असंतुलन: जब पौधों को पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिलते, तो उनकी वृद्धि प्रभावित होती है और पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। यह समस्या खासतौर पर ठंड के दौरान अधिक गंभीर होती है।

गेहूं की निचली पत्तियां पीली पड़ने के प्रबंधन के उपाय:

सिंचाई प्रबंधन:

  • खेत में जल-जमाव न होने दें।
  • पहली सिंचाई 20 से 25 दिनों के बाद करें, और उसके बाद पौधों की जरूरत के अनुसार सिंचाई जारी रखें। इस प्रक्रिया से पानी का सही उपयोग सुनिश्चित होता है और पौधे स्वस्थ रहते हैं।
  • ठंडी रातों में सिंचाई करने से पाले के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

पोषक तत्वों का समुचित प्रबंधन:

  • बुवाई के समय नाइट्रोजन (यूरिया) की 1/3 मात्रा, फास्फोरस और पोटाश का पूरा उपयोग करें।
  • पहली और दूसरी सिंचाई के समय क्रमशः दूसरी और तीसरी मात्रा दें।
  • जिंक सल्फेट (25 किग्रा/हेक्टेयर) और सल्फर (20-25 किग्रा/हेक्टेयर) का प्रयोग करें।
  • नत्रजन एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों का पत्तियों पर छिड़काव करें।

जैविक खाद और जैविक उपाय:

  • गोबर की खाद, वर्मीकंपोस्ट, और नीम की खली जैसे जैविक खादों का इस्तेमाल करें।
  • रोग प्रबंधन के लिए ट्राइकोडर्मा और पीएसबी का प्रयोग करें।
  • फसल अवशेष जलाने के बजाय डीकंपोजर का उपयोग कर उन्हें मिट्टी में मिलाएं।

ठंड और पाले से बचाव के उपाय:

  • ठंड से बचाव के लिए खेत में धुएं का प्रयोग करें।
  • ठंडी रातों में सिंचाई करने से तापमान को संतुलित रखा जा सकता है।

रोग और कीट प्रबंधन:

  • रोग प्रतिरोधी किस्में चयनित करें, जैसे PBW-343, HD-2967, और WH-1105, जो पौधों को विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाती हैं और फसल की गुणवत्ता और उपज को बढ़ाती हैं।
  • बीजों को बुवाई से पहले ट्राइकोडर्मा या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें।
  • फफूंदनाशकों का छिड़काव करें, जैसे पीली रस्ट के लिए प्रोपिकोनेज़ोल (0.1%) और जड़ गलन के लिए कार्बेन्डाजिम (0.2%)।

पोषण स्प्रे का उपयोग:

  • यदि समस्या गंभीर हो, तो 1-2% यूरिया (10-20 ग्राम यूरिया प्रति लीटर पानी में घोलकर) का छिड़काव करें।
  • 5% मैग्नीशियम सल्फेट का छिड़काव पौधों को ताजगी और हरा-भरा बनाए रखने में मदद करता है।

निष्कर्ष: गेहूं की निचली पत्तियों के पीले पड़ने की समस्या को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी प्रबंधन आवश्यक है। उचित सिंचाई, पोषक तत्वों का संतुलन, जैविक खाद का उपयोग और ठंड से बचाव के उपाय अपनाकर इस समस्या से बचा जा सकता है। साथ ही, पराली जलाने से बचना और फसल अवशेषों का सही प्रबंधन करना भी खेत की उर्वरता और उत्पादकता को बढ़ाने में सहायक होता है।