Wheat price: गेहूं के दाम MSP से 23% ज्यादा होने के कारण, आटे की कीमतों ने तोड़ा 15 साल का रिकॉर्ड

Wheat price: गेहूं के दाम MSP से 23% ज्यादा होने के कारण, आटे की कीमतों ने तोड़ा 15 साल का रिकॉर्ड

आटे की कीमतों में भी उछाल

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कृषि दुनिया
  • 26 Dec, 2024 11:30 AM IST ,
  • Updated Thu, 26 Dec 2024 12:30 PM

गेहूं की कीमतों में हालिया उछाल ने न केवल बाजार बल्कि आम आदमी की रसोई पर भी गहरा प्रभाव डाला है। इससे आटा, ब्रेड और बिस्किट जैसी वस्तुओं की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हो रही है। आटे की कीमतों ने 15 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है, और यह स्थिति उपभोक्ताओं और सरकार दोनों के लिए चिंता का विषय बन चुकी है।

मंडियों में एमएसपी से ज्यादा गेहूं की कीमत Wheat price higher than MSP in mandis:

वर्तमान में गेहूं की थोक कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से 23% ज्यादा चल रही है। इसका मतलब है कि किसानों और व्यापारियों को गेहूं बेचने में बड़ा फायदा हो रहा है, लेकिन उपभोक्ताओं की जेब पर इसका भारी असर पड़ रहा है। सरकारी कमोडिटी इंडेक्स एगमार्कनेट के अनुसार, 24 दिसंबर को यूपी के जालौन जिले की उरई थोक मंडी में गेहूं का थोक न्यूनतम मूल्य 2900 रुपये प्रति क्विंटल था, जो एमएसपी 2300 रुपये से लगभग 23 प्रतिशत अधिक है। इसी तरह, महाराष्ट्र के अमरावती मंडी में गेहूं की थोक न्यूनतम कीमत 2800 रुपये प्रति क्विंटल रही, और राजस्थान के अलवर मंडी में यह कीमत 2810 रुपये प्रति क्विंटल दर्ज की गई।

आटे की कीमतों ने तोड़ा रिकॉर्ड Flour prices broke record:

आटे की कीमतें अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं। दिसंबर में आटे का दाम ₹40 प्रति किलोग्राम हो गया, जो जनवरी 2009 के बाद सबसे ज्यादा है। पिछले 15 वर्षों में आटे की कीमतों में इस तरह की उछाल पहली बार देखी गई है। इससे रोटी, पराठा और अन्य गेहूं आधारित खाद्य पदार्थ महंगे हो गए हैं।

सरकार की कोशिशें और उनकी नाकामी Government's efforts and their failure:

सरकार ने बढ़ती कीमतों को काबू में लाने के लिए कई कदम उठाए हैं। भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने बाजार में गेहूं उपलब्ध कराने के लिए ई-ऑक्शन के जरिए 1 लाख टन गेहूं उतारा। इसके साथ ही मिलर्स पर स्टॉक लिमिट घटाई गई ताकि जमाखोरी रोकी जा सके। लेकिन इसके बावजूद गेहूं की कीमतों में गिरावट नहीं हो रही है।

मांग और आपूर्ति का असंतुलन: विशेषज्ञों का मानना है कि गेहूं की बढ़ती कीमतों का प्रमुख कारण मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन है। रबी सीजन में बुवाई तो बढ़ी है, लेकिन फसल बाजार में आने में समय लगेगा। इस बीच, जमाखोरी और काला बाजार भी कीमतों को बढ़ावा दे रहे हैं।

क्या मार्च तक बने रहेंगे ऊंचे दाम? विशेषज्ञों के अनुसार, गेहूं की कीमतों पर दबाव मार्च तक बने रहने की संभावना है। हालांकि, मार्च के बाद किसानों द्वारा स्टॉक रिलीज करने और नई फसल बाजार में आने से स्थिति में सुधार हो सकता है। इस साल रबी सीजन में 293.11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की बुवाई हुई है, जो पिछले साल से 9 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। इसके चलते उत्पादन बेहतर रहने की उम्मीद है।

महंगाई से निपटने की चुनौतियां: महंगाई को नियंत्रित करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। आटा और गेहूं से बने उत्पादों की कीमतें बढ़ने से मध्यम और निम्न वर्ग के परिवारों पर सीधा असर पड़ रहा है। बाजार में संतुलन बनाने और महंगाई पर काबू पाने के लिए दीर्घकालिक नीति की जरूरत है।

निष्कर्ष: गेहूं और आटे की बढ़ती कीमतें आम उपभोक्ताओं के लिए बड़ी चिंता का कारण बन गई हैं। सरकार को न केवल तत्काल उपाय बल्कि दीर्घकालिक समाधान भी तलाशने की जरूरत है। जमाखोरी पर कड़ी कार्रवाई, उत्पादन में बढ़ोतरी और आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना जरूरी है ताकि उपभोक्ताओं को राहत मिल सके।

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