भारत में खरीफ सीजन के दौरान धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है, और इस फसल की सफलता में बीज की गुणवत्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस संदर्भ में, पूसा बासमती 1886 एक बेहतरीन किस्म के रूप में सामने आई है, जो न केवल अधिक उत्पादन देती है, बल्कि बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता भी रखती है।
पूसा बासमती 1886 को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने विकसित किया है। यह विशेष रूप से हरियाणा और उत्तराखंड के बासमती उत्पादक क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जाती है, जहाँ की जलवायु और मृदा इसके विकास के लिए आदर्श हैं। इसकी औसत उपज 44.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि उपयुक्त प्रबंधन से यह 80 क्विंटल तक उत्पादन दे सकती है। इस किस्म में बैक्टीरियल ब्लाइट और ब्लास्ट जैसी प्रमुख बीमारियों के प्रति प्राकृतिक प्रतिरोधकता होती है, जिससे किसानों को कम रासायनिक खर्च में भी अच्छी गुणवत्ता और मात्रा में उपज मिलती है।
पूसा बासमती 1886 के लिए प्रति हेक्टेयर 16–20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई का सही समय 15 मई से 15 जून के बीच है। नर्सरी में बीज बोने के 25–30 दिन बाद रोपाई करनी चाहिए। रोपाई के दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी रखनी चाहिए।
इस किस्म के लिए 80:50:40 (N:P:K) अनुपात में उर्वरक की जरूरत होती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा आधार खाद के रूप में दें। सिंचाई के लिए, रोपाई के बाद पहले 2–3 सप्ताह तक खेत में 5–6 सेमी पानी भरकर रखें, और बाद में खेत की नमी के अनुसार सिंचाई करें। फूल आने के दौरान उचित नमी बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
खरपतवार नियंत्रण:
खरपतवार नियंत्रण के लिए ब्यूटाक्लोर 50 EC का छिड़काव किया जा सकता है, जो खरपतवारों की प्रारंभिक अवस्था में प्रभावी रूप से नियंत्रण करता है।
रोग और कीट नियंत्रण उपाय
पूसा बासमती 1886 किस्म न केवल उच्च उत्पादन देती है, बल्कि रोगों और कीटों के प्रति भी प्रभावी सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे यह किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प बन जाती है।