देश के अलग-अलग हिस्सों में इस बार गेहूं की फसल ने किसानों के चेहरे खिला दिए हैं। खासतौर पर जिन किसानों ने नई उन्नत किस्मों की बुवाई की थी, उन्हें जबरदस्त उत्पादन मिला है। वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक इस साल मौसम भी गेहूं के लिए अनुकूल रहा, जिससे उपज में इजाफा हुआ।
हर साल कृषि अनुसंधान संस्थान कुछ नई किस्में किसानों को ट्रायल के लिए देते हैं। इस बार तीन खास किस्में ऐसी रहीं जिन्होंने न सिर्फ अच्छी पैदावार दी बल्कि रोगों के खिलाफ भी बेहतर प्रतिरोध दिखाया। आइए जानते हैं इन टॉप 3 गेहूं की किस्मों के बारे में जिन्होंने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी।
HD 3385 किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म उत्तर भारत के किसानों के लिए बेहद लाभकारी साबित हुई है। किसान इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 65 से 70 क्विंटल तक उत्पादन ले पाए हैं, जबकि वैज्ञानिक परीक्षणों में यह उपज 75 क्विंटल तक पाई गई है।
इस किस्म की खास बात है कि यह करनाल बंट रोग, पीला, भूरा और काला रतुआ जैसी बीमारियों के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधक है। इसकी ऊंचाई 98 सेंटीमीटर होती है, और इसमें टिलरिंग की समस्या नहीं आती। यह किस्म अगेती बुवाई के लिए उपयुक्त है और तापमान में बदलाव के बावजूद उत्पादन प्रभावित नहीं होता।
DBW 377 जिसे करण बोल्ड के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा विकसित की गई है। इस किस्म ने कई राज्यों में बेहतर प्रदर्शन किया है। किसान इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 65 से 70 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त कर चुके हैं, वहीं अधिकतम उपज 86.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक रिकॉर्ड की गई है।
इस किस्म की एक खासियत यह है कि यह भूरे रतुआ, तना रतुआ और गेहूं ब्लास्ट जैसी बीमारियों के प्रति बेहद प्रतिरोधक है। 1000 दानों का वजन लगभग 48 ग्राम होता है, जो इसे उच्च गुणवत्ता वाला अनाज बनाता है। इसकी बुवाई 1 से 10 नवंबर के बीच करने की सलाह दी जाती है और बीज दर 100 किग्रा/हेक्टेयर रहती है।
HI 1650 जिसे पूसा ओजस्वी के नाम से जाना जाता है, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के इंदौर स्थित क्षेत्रीय केंद्र ने विकसित किया है। यह किस्म कम सिंचाई वाले क्षेत्रों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है। इस किस्म से किसान प्रति हेक्टेयर 60 से 65 क्विंटल तक उत्पादन ले चुके हैं, और वैज्ञानिक परीक्षणों में यह उपज 70 से 75 क्विंटल तक पाई गई है।
इस किस्म की सबसे बड़ी खूबी है कि इसका तना मोटा और ऊंचाई सामान्य (90-95 सेमी) होती है, जिससे तेज बारिश या हवा में भी फसल गिरती नहीं है। एक बाली में 70 से 80 दाने आते हैं और 1000 दानों का वजन 45-50 ग्राम होता है। इसकी फसल 115 से 120 दिनों में पक जाती है।
इस वर्ष किसानों को गेंहू की इन तीन उन्नत किस्मों से जबरदस्त मुनाफा हुआ है। अच्छी पैदावार, कम बीमारियां और मौसम के प्रति सहनशीलता ने इन्हें किसानों की पहली पसंद बना दिया है। अगर आप भी अगली फसल में बंपर उत्पादन चाहते हैं, तो इन वैरायटीज़ को ज़रूर ट्राय करें।