ग्रीष्मकालीन बाजरे की खेती गर्म जलवायु तथा 50-60 सें.मी. वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से की जा सकती है। इस फसल के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 32-37 डिग्री सेल्सियस होता है। बाजरे की खेती के लिए बलुई दोमट मृदा सबसे बेहतर मानी जाती है, लेकिन इसे जल निकास वाली अन्य मिट्टियों में भी उगाया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित नई उन्नत किस्में न केवल अधिक उपज देती हैं बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता भी रखती हैं।
बाजरा की कुछ संकर एवं संकुल किस्में बाजार में उपलब्ध हैं, जो किसानों को अधिक उपज और अच्छा उत्पादन देने में सहायक हैं।
बाजरे की बुवाई फरवरी के मध्य से लेकर जून – जुलाई तक की जा सकती है। प्रति हेक्टेयर 5-7 कि.ग्रा. बीज की मात्रा उचित मानी जाती है। बुवाई के समय पंक्तियों के बीच 25 सें.मी. की दूरी रखें और बीज को 2 सें.मी. से अधिक गहराई में न बोएं।
बाजरे की उपज को बढ़ाने के लिए उचित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना आवश्यक है।
बुवाई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा 3-4 सें.मी. गहराई पर डालें। बची हुई नाइट्रोजन को अंकुरण के 4-5 सप्ताह बाद मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें।
खरपतवार नियंत्रण के उपाय:
अच्छी पैदावार के लिए पहले 30 दिनों तक खेत को खरपतवारमुक्त रखना आवश्यक है। पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 15 दिनों बाद करें और इसे 15 दिन के अंतराल पर दोहराएं।
खरपतवार नियंत्रण के लिए एट्राजिन 1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर बुवाई के तुरंत बाद या 1-2 दिन के भीतर छिड़कें। इसके अलावा, 800 लीटर पानी में 0.5 कि.ग्रा. एट्राजिन घोलकर भी छिड़काव किया जा सकता है।
सिंचाई प्रबंधन (Water Management):
फसल की अच्छी उपज के लिए खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखना जरूरी है। बालियां निकलते समय और दाना बनने के समय नमी की अत्यधिक आवश्यकता होती है। गर्मी के मौसम में 8-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। ग्रीष्मकालीन बाजरा में 9-10 सिंचाइयों की आवश्यकता हो सकती है।
बाजरे की फसल में रोग एवं बचाव के उपाय:
1. डाउन मिड्यू रोग (Downy Mildew):
इस रोग में पत्तियों पर सफेद धब्बे बनते हैं और पत्तियाँ पीली पड़कर गिरने लगती हैं। यह रोग स्यूडोपेरोनोस्पोरा क्यूबेन्सिस नामक फफूंद के कारण होता है, जो अधिक नमी व ठंडे मौसम में फैलता है।
रोकथाम:
2. स्मट रोग (Smut Disease):
इस रोग में बाजरे की बालियों पर काले रंग के फफूंद के धब्बे बनते हैं और वे खराब हो जाती हैं। यह रोग क्लैविसेप्स नामक फफूंद के कारण होता है।
रोकथाम:
बाजरे की खेती गर्मी में भी बेहतर उत्पादन दे सकती है, बशर्ते उन्नत किस्मों का चयन किया जाए और सही समय पर फसल प्रबंधन किया जाए। यदि किसान सही समय पर बुवाई, उचित उर्वरक प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण और रोगों से बचाव के उपाय अपनाते हैं, तो उन्हें अच्छी उपज प्राप्त हो सकती है। मार्च से जून-जुलाई तक इन उन्नत किस्मों की बुवाई कर किसान जबरदस्त मुनाफा कमा सकते हैं।