बेबी कॉर्न की खेती: अधिक आय का अवसर:
बेबी कॉर्न, जिसे शिशु मक्का भी कहा जाता है, मक्का के अनपके भुट्टे होते हैं, जिन्हें सिल्क आने के 1 से 3 दिन के अंदर तोड़ा जाता है। बेबी कॉर्न की खेती का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसकी बाजार में अच्छी मांग है, जिससे किसानों को बढ़िया कीमत मिलती है। बेबी कॉर्न की खेती से किसानों को प्रति एकड़ 40,000 से 45,000 रुपये तक का शुद्ध लाभ मिल सकता है।
बेबी कॉर्न की बुवाई फरवरी से नवंबर के बीच की जा सकती है। उत्तर प्रदेश में बेबी कॉर्न की प्रमुख किस्में हैं आई.एम.एच.बी 1539, सेंट्रल मक्का के, वी.एल. बेबी कॉर्न 2, एच.एम. 4, जी 5414। इन किस्मों के माध्यम से बेबी कॉर्न की खेती को और अधिक लाभदायक बनाया जा सकता है।
बेबी कॉर्न की पौधों की संख्या 40,000 प्रति एकड़ होनी चाहिए, जिसके लिए 10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इसकी उपज 6 से 7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है, जबकि इसकी बिक्री 7 से 8 हजार रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से होती है। इस प्रकार, किसान 40,000 से 45,000 रुपये प्रति एकड़ तक का मुनाफा कमा सकते हैं।
स्वीट कॉर्न, जिसे अमेरिकन भुट्टा भी कहा जाता है, शहरी इलाकों में अत्यधिक लोकप्रिय है। इसकी तुड़ाई कच्चे भुट्टे के रूप में परागण के 18 से 22 दिन बाद कर ली जाती है। उत्तर प्रदेश के पर्यटक जिलों और शहरी क्षेत्रों में स्वीट कॉर्न की खेती बेहद लाभदायक सिद्ध हो रही है। स्वीट कॉर्न की प्रमुख किस्में हैं मिष्ठी, हाई ब्रिक्स 39, हाई ब्रिक्स 53, कैंडी, सेंट्रल मक्का वी. एल. स्वीट कॉर्न 1 और एन 75। इसकी बुवाई 15 फरवरी तक पूरी कर लेनी चाहिए। प्रति एकड़ बीज की मात्रा 10 किलो होनी चाहिए, जिससे एक एकड़ में लगभग 20,000 भुट्टे प्राप्त किए जा सकते हैं।
स्वीट कॉर्न की फसल 50 से 60 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी अनुमानित उपज 60,000 से 70,000 रुपये प्रति एकड़ तक हो सकती है। इसके बढ़ते बाजार मूल्य के कारण यह किसानों के लिए एक अच्छा कमाई का साधन बन सकता है।
आलू और सरसों की फसल के बाद बसंत ऋतु में जायद मक्का की खेती की जा सकती है। इसे शून्य जुताई प्रणाली में भी उगाया जा सकता है, विशेष रूप से आलू की फसल के बाद बिना खेत जोते भी इसकी सीधी बुवाई की जा सकती है। बसंतकालीन मक्का की बुवाई 20 जनवरी से 20 फरवरी के बीच करने से अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है और पानी की बचत भी होती है। हालांकि, इसकी बुवाई 20 मार्च तक भी की जा सकती है।
उत्तर प्रदेश में जायद मक्का की प्रमुख किस्में हैं पीएमएच 10, पीएमएच 8, पीएमएच 7 और डीकेसी 9108। मक्के की फसल मई के अंतिम सप्ताह से जून के पहले सप्ताह तक तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 20-25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है।
जायद मक्का की खेती किसानों के लिए कम समय में अधिक लाभ कमाने का एक बेहतरीन अवसर प्रदान करती है। चाहे बेबी कॉर्न हो, स्वीट कॉर्न हो या फिर दाने वाली मक्का, इनकी बढ़ती मांग के कारण किसान अच्छी आमदनी कर सकते हैं। यदि किसान सही समय पर सही किस्म का चयन कर खेती करें, तो वे जायद मक्का से बंपर मुनाफा कमा सकते हैं।