कृषि दुनिया में आपका स्वागत है।

Potato cultivation: आलू की फसल को बचाने के लिए पछेती झुलसा रोग प्रबंधन के तरीके जानें

Potato cultivation: आलू की फसल को बचाने के लिए पछेती झुलसा रोग प्रबंधन के तरीके जानें
पछेती झुलसा रोग का समाधान
30 Nov, 2024 12:00 AM IST Updated Sat, 30 Nov 2024 01:00 PM

आलू की खेती में पछेती झुलसा रोग का खतरा, आलू की फसल के लिए पछेती झुलसा (लेट ब्लाइट) एक गंभीर समस्या है, जो फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टान्स नामक फफूंद के कारण होती है। यह रोग ठंडी और नम परिस्थितियों में तेजी से फैलता है और अगर समय रहते इसका प्रबंधन न किया जाए, तो यह पूरी फसल को नष्ट कर सकता है। इसके कारण किसानों को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है और आलू की उपलब्धता तथा बाजार मूल्य भी प्रभावित होते हैं।

लेट ब्लाइट रोग के प्रभाव Effects of late blight disease:

  1. फसल का व्यापक विनाश
    पछेती झुलसा रोग पत्तियों, तनों और कंदों को नष्ट कर देता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण रुक जाता है और उत्पादन में 100% तक की हानि हो सकती है।
  2. कटाई के बाद नुकसान
    संक्रमित कंद भंडारण में तेजी से सड़ने लगते हैं, जिससे किसानों को भारी आर्थिक झटका लगता है।
  3. उत्पादन लागत में वृद्धि
    इस रोग से बचाव के लिए किसानों को फफूंदनाशकों और अन्य उपायों पर भारी खर्च करना पड़ता है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
  4. बाजार पर असर
    जब रोग बड़े पैमाने पर फैलता है, तो आलू की आपूर्ति घट जाती है, जिससे कीमतें बढ़ने लगती हैं और खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।

पछेती झुलसा रोग का इतिहास History of late blight:

यह रोग पहली बार 1945 में आयरलैंड में देखा गया था, जब इसके कारण आलू की पूरी फसल तबाह हो गई और भयंकर अकाल पड़ा। यह मुख्य रूप से तब फैलता है जब वातावरण में नमी और ठंडक अधिक हो और लगातार बरसात का माहौल बना रहे।

ये भी पढें... किसानों की हुई बल्ले- बल्ले, खेत से गुजरने वाली हाईटेंशन बिजली लाइनों पर हरियाणा के किसानों को मिलेगा मुआवजा

रोग की पहचान कैसे करें How to identify the disease?

  • पत्तियों पर सफेद धब्बे: पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के छोटे गोले दिखाई देते हैं।
  • पत्तियों का काला पड़ना: समय के साथ ये धब्बे भूरे या काले रंग में बदल जाते हैं।
  • कंदों का छोटा आकार: पत्तियों के खराब होने से कंद छोटे हो जाते हैं और उत्पादन घट जाता है।

पर्यावरणीय कारक:

  • यह रोग 18-22 डिग्री सेल्सियस के तापमान और 90% आर्द्रता में सबसे तेजी से फैलता है।
  • फफूंद के बीजाणु निचली पत्तियों और संक्रमित तनों पर बनते हैं।

पछेती झुलसा से बचाव के उपाय:

  1. रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन
    रोग से बचने के लिए ऐसे बीजों का उपयोग करें जो इस रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखते हों।
  2. फफूंदनाशकों का उपयोग
    • बुवाई से पहले मेटालोक्सिल और मैनकोजेब जैसे फफूंदनाशकों से बीज का उपचार करें।
    • 1.5 ग्राम फफूंदनाशक को प्रति लीटर पानी में घोलें और बीजों को आधे घंटे तक इसमें डुबोकर छाया में सुखाएं।
  3. समय पर छिड़काव करें
    • स्वस्थ फसल के लिए मैनकोजेब फफूंदनाशक का 0.2% घोल तैयार कर छिड़काव करें।
    • यदि रोग लक्षण दिखाई दें, तो साइमोक्सेनिल और मैनकोजेब का 3 ग्राम घोल प्रति लीटर पानी में तैयार कर छिड़काव करें।
    • 800 से 1000 लीटर दवा घोल प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें।
  4. फसल चक्र अपनाएं
    आलू की फसल को बार-बार एक ही स्थान पर न लगाएं। फसल चक्र अपनाने से रोग फैलने की संभावना कम हो जाती है।
  5. सिंचाई का प्रबंधन
    फसल में अत्यधिक नमी से बचने के लिए उचित सिंचाई प्रबंधन करें।

महत्वपूर्ण सुझाव:

  • फफूंदनाशक का उपयोग करते समय पैकेट पर दिए गए निर्देशों का पालन करें।
  • रोग की प्रारंभिक अवस्था में ही इसे पहचानकर उपचार करें, ताकि फसल को पूरी तरह से बचाया जा सके।

निष्कर्ष पछेती झुलसा रोग आलू की खेती के लिए एक गंभीर चुनौती है। इसे नियंत्रित करने के लिए सही समय पर उचित प्रबंधन और वैज्ञानिक विधियों का पालन करना आवश्यक है। इन उपायों को अपनाकर किसान कम लागत में बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं और फसल की गुणवत्ता बनाए रख सकते हैं।

ये भी पढें... किसान ऐसे करें गेहूं की बुआई, मिलेगी बंपर पैदावार, जानें विशेषज्ञ की सलाह