रबी फसलों की सिंचाई कृषि में सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है, लेकिन अक्सर यह देखा जाता है कि किसान सतही सिंचाई पद्धतियों का उपयोग करते हैं, जो बहुत अधिक पानी की खपत करती हैं। ऐसे में, किसानों के लिए सिंचाई की एक ऐसी विधि को अपनाना जरूरी है, जिससे पानी की बचत हो और उत्पादन में भी वृद्धि हो। आज हम इस आर्टिकल में रबी फसलों के लिए एक उन्नत सिंचाई पद्धति 'स्प्रिंकलर सिंचाई' के बारे में जानेंगे, जो कम पानी में उच्च उत्पादन प्राप्त करने में सहायक हो सकती है।
स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति को बौछरी सिंचाई भी कहा जाता है। इसमें पानी का छिड़काव फव्वारे या स्प्रिंकलर के माध्यम से किया जाता है, जिससे पौधों पर वर्षा की बूंदें गिरती हैं। इस विधि का उपयोग रबी फसलों के लिए विशेष रूप से किया जाता है, क्योंकि यह पानी की बचत के साथ-साथ पौधों को उचित मात्रा में नमी भी प्रदान करती है। स्प्रिंकलर सिस्टम के मुख्य घटक होते हैं:
स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति में पानी का दबाव उच्च होता है, जिससे पानी की बूंदें दूर-दूर तक फैल जाती हैं और खेत की पूरी सतह पर समान रूप से सिंचाई होती है।
स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति का रखरखाव: स्प्रिंकलर प्रणाली को लंबे समय तक सही तरीके से चलाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सावधानियाँ रखनी चाहिए:
सतही सिंचाई प्रणाली: एक संक्षिप्त परिचय: भारत में ज्यादातर क्षेत्रों में सतही सिंचाई का ही उपयोग होता है। इसमें नहरों से पानी को नालियों द्वारा खेतों में पहुँचाया जाता है। हालांकि, इस प्रणाली में यदि खेत समतल नहीं होते तो पानी की काफी बर्बादी होती है। इस समस्या को हल करने के लिए अब किसान लेजर तकनीक का उपयोग कर सकते हैं, जिससे खेत समतल हो जाते हैं और जलोपयोग की दक्षता बढ़ जाती है।
निष्कर्ष: स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति रबी फसलों के लिए अत्यधिक लाभकारी साबित हो सकती है। यह न केवल पानी की बचत करती है, बल्कि फसल की वृद्धि और गुणवत्ता में भी सुधार करती है। इसके अलावा, यह विधि उन क्षेत्रों में भी प्रभावी है जहाँ सतही सिंचाई कठिन होती है। किसानों को इस पद्धति का उपयोग बढ़ाना चाहिए, ताकि कम पानी में भी उच्चतम उत्पादन प्राप्त किया जा सके और कृषि के जल उपयोग दक्षता में सुधार हो सके।
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