नई दिल्ली। किसानों के लिए एक खुशखबरी है। अब बाजरे की खेती में कम समय, कम मेहनत और कम लागत के साथ बेहतर उत्पादन संभव है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित बाजरे की उन्नत किस्म पूसा-443 किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प बनकर उभरी है। यह किस्म सिर्फ 85 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और रोगों के प्रति भी काफी हद तक प्रतिरोधी है।
पूसा-443 किस्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती। यह किस्म उच्च तापमान और सूखे की परिस्थितियों में भी बेहतर उत्पादन देती है। यही कारण है कि यह किस्म उन क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है, जहां सिंचाई की सीमित व्यवस्था है।
इस किस्म में डाउन मिड्यू और ब्लास्ट जैसे रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है, जो इसे अन्य पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक सुरक्षित और टिकाऊ बनाती है। इससे किसानों को दवाओं पर होने वाले अतिरिक्त खर्च से भी राहत मिलती है।
पूसा-443 की खेती के लिए खेत की गहरी जुताई और अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना आवश्यक है। बुवाई के लिए 6 से 8 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। किसान चाहें तो जैविक खाद जैसे वर्मी कंपोस्ट या नीम खली का उपयोग करके मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं।
30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार, आमदनी लाखों में संभव:
इस किस्म की खेती से प्रति हेक्टेयर लगभग 30 क्विंटल तक उत्पादन संभव है। यदि बाजार में बाजरे का भाव औसतन ₹2000 प्रति क्विंटल माना जाए, तो एक हेक्टेयर में किसानों को ₹60,000 या उससे अधिक की आमदनी हो सकती है। उन्नत तकनीक और उचित देखरेख से यह आंकड़ा और बढ़ सकता है।
बाजरा पूसा-443: टिकाऊ खेती और पोषण सुरक्षा की ओर एक कदम:
बाजरा न केवल पोषण से भरपूर अनाज है, बल्कि इसकी खेती जलवायु परिवर्तन के समय में एक मजबूत विकल्प बनकर उभर रही है। पूसा-443 जैसी किस्में किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाती हैं और साथ ही सतत कृषि के लक्ष्य को भी मजबूत करती हैं। कृषि विशेषज्ञ किसानों को इस किस्म को अपनाने की सलाह दे रहे हैं।