पराली जलाने का मुद्दा कई वर्षों से चर्चा का विषय बना हुआ है, विशेषकर दिल्ली और आसपास के राज्यों में बढ़ते प्रदूषण के कारण। केंद्र सरकार ने हाल ही में इस मुद्दे पर सख्त कदम उठाते हुए जुर्माने की राशि में वृद्धि की है। अब पराली जलाने पर किसानों से 30,000 रुपये तक का पर्यावरण मुआवजा वसूला जाएगा। आइए, इस नए नियम के बारे में विस्तार से समझते हैं।
केंद्र सरकार ने 6 नवंबर 2024 को "पराली जलाने पर पर्यावरण मुआवजे का अधिरोपण, संग्रह और उपयोग" संशोधन नियम 2024 को अधिसूचित किया। इसके तहत पर्यावरण मुआवजे (ईसी) की दरों में बढ़ोतरी की गई है। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अधिकारियों को इस नए नियम को तत्काल प्रभाव से लागू करने का निर्देश दिया गया है।
संशोधित ईसी दरें (पराली जलाने की प्रति घटना पर):
भूमि का क्षेत्रफल | ईसी शुल्क की पूर्व दरें (रुपये में) | संशोधन के बाद दरें (रुपये में) |
---|---|---|
दो एकड़ से कम भूमि वाले किसान | 2,500 | 5,000 |
दो से पांच एकड़ भूमि वाले किसान | 5,000 | 10,000 |
पांच एकड़ से अधिक भूमि वाले किसान | 15,000 | 30,000 |
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने बढ़ते प्रदूषण के खतरे को देखते हुए यह निर्णय लिया है। दिल्ली एनसीआर और आसपास के इलाकों में वायु गुणवत्ता बेहद खराब स्तर पर पहुँच चुकी है, जिसके मुख्य कारणों में पराली जलाना भी शामिल है।
सीएक्यूएम ने दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अधिकारियों को इस नए नियम को तत्काल प्रभाव से लागू करने का निर्देश दिया है। इस तरह के नियमों का उद्देश्य वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना और लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा करना है।
पराली जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और अन्य खतरनाक गैसें वातावरण में जाती हैं, जो वायु प्रदूषण का कारण बनती हैं। इसके चलते लोग स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करते हैं, खासकर बच्चों और बुजुर्गों में सांस की समस्याएं बढ़ जाती हैं।
पर्यावरण मुआवजा और वायु प्रदूषण पर सख्त रुख: दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने पर्यावरण मुआवजे की राशि बढ़ाने की सिफारिश की थी। आयोग के निर्देशानुसार सभी संबंधित नोडल और पर्यवेक्षी अधिकारी किसानों पर पर्यावरण मुआवजा लगाने और उसे वसूलने के लिए अधिकृत हैं।
निष्कर्ष: पराली जलाने पर सख्ती से रोक लगाने का यह निर्णय एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल वायु प्रदूषण में कमी आएगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी। सरकार और किसानों को मिलकर इस समस्या का स्थायी समाधान खोजना होगा, ताकि सभी को स्वच्छ हवा मिल सके।