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फसल की जुताई एवं रोपण: टमाटर की फसल के लिए भूमि की जुताई और रोपण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। रोपण से पहले भूमि की तैयारी और उर्वरक का प्रयोग आवश्यक है।

जलवायु / तापमान Climate/Temperature: टमाटर की खेती के लिए आदर्श तापमान 24 से 28°C है। 33°C से ऊपर का तापमान पौधों के विकास में बाधा डालता है। पौधों को लगाने के पहले 30 दिनों में पानी की अधिक आवश्यकता होती है।

पानी की मांग / जल प्रबंधन Water Demand/Water Management: ड्रिप इरिगेशन पद्धति टमाटर की खेती के लिए सर्वोत्तम है। फसल की सामान्य जल की मांग 600-900 मिली लीटर होती है। नमी बनाए रखने के लिए मल्चिंग विधि सहायक होती है। पौधों को धीरे-धीरे पानी दें ताकि जड़ें अच्छी तरह विकसित हो सकें। फलों के पकने के दौरान पानी देना बंद कर दें।

मिट्टी Soil: दोमट मिट्टी टमाटर की खेती के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

प्रमुख किस्में Major varieties: 

टमाटर की सामान्य और संकर प्रजातियां होती हैं।

  • सामान्य किस्में: हिसार अरुण, काशी अमृत, पूसा अर्ली, काशी अनुपम आदि।
  • संकर किस्में: रश्मि, रूपाली, वैशाली, स्वर्ण वैभव आदि।

बुवाई का समय Time of sowing: सामान्य प्रजातियों के लिए बीज दर 500-600 ग्राम प्रति हेक्टेयर और संकर किस्मों के लिए 200-250 ग्राम प्रति हेक्टेयर होती है। बीज को बुवाई से पहले फफूंद नाशक दवाओं से उपचारित करना चाहिए।

खेत की तैयारी Field preparation: 

भूमि की जुताई के बाद 0.75 मीटर चौड़ी और 15-20 सेमी ऊँची क्यारियाँ बनाएं। गोबर की खाद, डीएपी, म्यूरेट ऑफ पोटाश और यूरिया का उपयोग करना चाहिए।

फसल चक्र Crop rotation: टमाटर का फसल चक्र 8-10 सप्ताह का होता है। नाइट्रोजन मिलाने के लिए यह उपयुक्त होती है। फसल की देखभाल में कीटनाशक और समय पर निराई-गुड़ाई जरूरी है।

खरपतवार प्रबंधन Weed management: समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके खेत को खरपतवार मुक्त रखें। खरपतवार नियंत्रण में पौधों के पास मिट्टी चढ़ा दें।

रोग और रोग निवारण Disease and disease prevention:

  1. लेट ब्लाइट: नमी के कारण पत्तियों पर धब्बे आ जाते हैं। प्रभावित पौधों को जल्द नष्ट करें और बीजों का चयन सावधानीपूर्वक करें।
  2. आर्द्रगलन रोग: पौधों के तने पीले और नरम हो जाते हैं। रोग फैलने से बचने के लिए उचित जल निकासी करें।
  3. मोजेक विषाणु रोग: यह पौधों की वृद्धि रोकता है और पत्तियाँ पीली हो जाती हैं। प्रभावित पौधों को तुरंत हटाएं।
  4. अगेती झुलसा: पत्तियों पर भूरे धब्बे होते हैं। फसल चक्र अपनाएं और प्रभावित पौधों को हटाएं।
  5. पत्ती धब्बा रोग: नमी के कारण पत्तियों पर काले घेरे के साथ धब्बे होते हैं। खरपतवार नियंत्रण करें।
  6. जीवाणु धब्बा: पत्तियों पर छोटे पीले धब्बे होते हैं। रोगग्रस्त पौधों को हटा दें।
  7. कुकड़ा रोग: सफेद मक्खियों के कारण फैलता है। पत्तियाँ पीली होकर मुड़ जाती हैं। प्रभावित पौधों को हटाएं।
  8. फ्यूजिरियम उकठा: पत्तियाँ पीली होकर गिर जाती हैं। जड़ों में सही दवाओं का प्रयोग करें।
  9. फल छेदक कीट: यह कीट फलों को नुकसान पहुंचाते हैं।