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सूरजमुखी एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है, जिसका वानस्पतिक नाम Helianthus annuus है। यह फसल मुख्य रूप से इसके बीजों के लिए उगाई जाती है, जिनसे तेल निकाला जाता है। अपनी खूबसूरती और बहुपयोगी गुणों के कारण सूरजमुखी के फूल काफी लोकप्रिय हैं। सूरजमुखी की खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह विभिन्न जलवायु और मिट्टी की स्थितियों में भी अच्छा उत्पादन देती है

सूरजमुखी

जलवायु / तापमान: जलवायु और तापमान फसल की वृद्धि और पैदावार पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। सूरजमुखी की फसल के लिए 20-30°C का तापमान आदर्श है।

जल की मांग Water demand:

सूरजमुखी को नियमित और पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है, खासकर फूल आने और बीज बनने के समय।

मिट्टी Soil: सूरजमुखी को रेतली दोमट से लेकर काली मिट्टी में उगाया जा सकता है। इसे उपजाऊ और जल निकास वाली मिट्टी में अच्छे परिणाम मिलते हैं। मिट्टी की पीएच लगभग 6.5-8 होनी चाहिए।

प्रमुख किस्में Major Varieties:

  • Jwalamukhi: 170 सेमी लंबा, 120 दिनों में तैयार, 7.3 क्विंटल प्रति एकड़, 42% तेल।
  • GKSFH 2002: 115 दिनों में पकता है, 7.5 क्विंटल प्रति एकड़, 42.5% तेल।
  • PSH 2080 (2019): 151 सेमी लंबा, 97 दिनों में पकता है, 9.8 क्विंटल प्रति एकड़, 43.7% तेल।
  • PSH 1962 (2015): 165 सेमी लंबा, 99 दिनों में पकता है, 8.2 क्विंटल प्रति एकड़, 41.9% तेल।
  • DK 3849 (2013): 172 सेमी लंबा, 102 दिनों में पकता है, 8.4 क्विंटल प्रति एकड़, 34.5% तेल।

फसली चक्र: पंजाब में फसली चक्र: धान/मक्की - मक्की - आलू - सूरजमुखी।

फसल की बुवाई का उचित समय: बुवाई का सबसे उपयुक्त समय जनवरी के अंत तक होता है। अगर फरवरी में करना हो, तो पनीरी से करें।

खेत की तैयारी: फसल की अच्छी उपज के लिए दो से तीन बार जुताई करें।

फसल चक्र: सूरजमुखी की फसल का चक्र सामान्यतः 120-150 दिन का होता है।

जल प्रबंधन: मिट्टी की किस्म और मौसम के अनुसार 9-10 बार सिंचाई करें। पहली सिंचाई बुवाई के तीन महीने बाद करें।

खरपतवार प्रबंधन: पहले 45 दिनों में खरपतवारों को हटाएं। पहले और दूसरे गोडाई के दौरान सिंचाई करें।

कटाई: जब पत्ते सूखने लगे और फूल पीले होने लगें, तब फसल की कटाई करें।

रोग और रोग निवारण Disease and disease prevention:

  • कुंगी: ट्राइडमॉर्फ 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में स्प्रे करें।
  • जड़ों का गलना: टराईकोडरमा विरिडी 1 किलो मिलाएं।
  • तने का गलना: बिजाई से पहले 2 ग्राम थिराम से बीज का उपचार करें।

कटाई के बाद: कटाई के बाद फूलों को 2-3 दिन सूखने दें और फिर बीज निकालें।