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जलवायु / तापमान: सरसों एक शीतकालीन तिलहनी फसल है, जो ठंडी और शुष्क जलवायु में अच्छी उपज देती है। इसकी बुवाई से पहले सिंचाई करना सबसे उपयुक्त होता है, और फसल के परिपक्व होने के दौरान सूखी और नमी-संरक्षित मिट्टी आदर्श मानी जाती है।

आदर्श तापमान: सरसों की फसल के लिए 22 से 26°C के बीच का तापमान आदर्श होता है।

जल की आवश्यकता: सरसों की फसल के लिए 250 से 450 मिमी पानी की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद या फूल आने पर करनी चाहिए। दूसरी सिंचाई 50-55 दिन बाद, जब फलियाँ भरने लगें, तब करनी चाहिए।

मिट्टी की आवश्यकताएँ: सरसों की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकासी की अच्छी सुविधा हो, सबसे उपयुक्त होती है। अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय मिट्टी सरसों की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती।

मिट्टी का pH: सरसों की फसल के लिए आदर्श pH लगभग 7 होता है। यदि pH 7 से अधिक हो, तो जिप्सम मिलाएं और यदि 7 से कम हो, तो चूना मिलाएं।

प्रमुख किस्में Major varieties:

  1. राज विजय सरसों-2: सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों के लिए उपयुक्त, 36-41% तेल की मात्रा, 120-135 दिनों में तैयार, उपज 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
  2. माया: जल्दी बुवाई और अधिक तापमान के लिए उपयुक्त, 40% तेल की मात्रा, 125-135 दिनों में तैयार, उपज 20-23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
  3. जवाहर सरसों-2: पाउडरी मिल्ड्यू और पाले के प्रति सहनशील, 130-140 दिनों में तैयार, उपज 15-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
  4. जवाहर सरसों-3: झुलसा और माहू रोग प्रतिरोधक, 130-135 दिनों में तैयार, उपज 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

खेत की तैयारी Field preparation: गर्मियों में गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि खेत से कीट और खरपतवार समाप्त हो सकें। बारिश के बाद डिस्क हल से जुताई करने से मिट्टी में नमी बनी रहती है। बुवाई से पहले यदि मिट्टी में नमी की कमी हो, तो प्री-सोइंग सिंचाई की जानी चाहिए।

फसलों की बुवाई Sowing of crops: सरसों की बुवाई पारंपरिक हल या सीड ड्रिल द्वारा पंक्तियों में की जानी चाहिए। पंक्तियों के बीच की दूरी 30 सेमी और पौधों के बीच की दूरी 10-12 सेमी रखी जानी चाहिए। बीजों को 2-3 सेमी से गहराई में नहीं बोना चाहिए।

बीज दर Seed rate: जल्दी बुवाई करने से उपज बढ़ती है और कीट-रोगों का खतरा कम होता है।

  • तोरी: 4-5 किग्रा/हेक्टेयर, सितंबर की शुरुआत में।
  • बर्षारहित सरसों: 5.5-6 किग्रा/हेक्टेयर, 15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक।
  • सिंचित सरसों: 4.5-5 किग्रा/हेक्टेयर, 10 अक्टूबर से 30 अक्टूबर तक।

उर्वरक fertilizer: बेहतर उपज के लिए जैविक उर्वरक जैसे वर्मी कम्पोस्ट, गोबर खाद या कम्पोस्ट का उपयोग करें। सरसों की फसल को अधिक सल्फर, नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटाश की आवश्यकता होती है।

जल प्रबंधन water management:
सरसों की फसल को सीमा पट्टी विधि से सिंचाई करनी चाहिए। फसल में 4-6 मीटर चौड़ी पट्टियाँ बनाई जाती हैं ताकि पानी समान रूप से बंट सके। सही समय पर सिंचाई करने से 25-50% तक उपज बढ़ सकती है।

खरपतवार प्रबंधन: खरपतवार हटाने के लिए खेत को नियमित रूप से साफ रखना चाहिए। पहली निराई बुवाई के 20-25 दिन बाद और दूसरी निराई 40-45 दिन बाद करनी चाहिए।

कटाई: जब सरसों के बीज कठोर हो जाएं और फलियाँ पीली पड़ जाएं, तो फसल की कटाई करनी चाहिए। फसल 110-145 दिनों में परिपक्व होती है।

रोग और रोग नियंत्रण Disease and disease control:

सफेद जंग: 10-18°C तापमान में होता है, पत्तियों के नीचे सफेद फफोले बनते हैं।
निवारण: समय पर बुवाई और खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए।

अल्टरनेरिया झुलसा: सितंबर में होता है, सभी भाग प्रभावित होते हैं।
निवारण: गर्मियों में गहरी जुताई और जल्दी बुवाई करें।

पत्ती छेदक: दिसंबर की शुरुआत में उभरता है और पत्तियों में सुरंग बनाकर फसल को नुकसान पहुँचाता है।
निवारण: उचित फसल चक्र का पालन करें।

डाउनमिल्ड्यू: 10-20°C तापमान पर होता है, पत्तियों पर भूरे धब्बे और कवकीय वृद्धि होती है।
निवारण: समय पर बुवाई और प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें।

तना सड़न: फूल आने के बाद दिखाई देती है, निचले तने पर भूरे धब्बे होते हैं।
निवारण: प्रमाणित, रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें और गर्मियों में गहरी जुताई करें।

उपज: प्रत्याशित उपज 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

भंडारण: सरसों के बीजों को सूखी और ठंडी जगह पर रखें।