शकरकंदी का वैज्ञानिक नाम Ipomoea batatas है, और इसका मुख्य उद्देश्य इसके मीठे और स्टार्चयुक्त कंदों की खेती करना है। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी मानी जाती है, क्योंकि इसमें बीटा-कैरोटीन और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं। शकरकंदी बेलदार पौधा होता है, जिसके पत्ते दिल के आकार या पंजे की आकृति के होते हैं। इसकी जड़ें कई रंगों में पाई जाती हैं जैसे बैंगनी, भूरी, सफेद, और इसका गूदा पीले, नारंगी, सफेद या बैंगनी रंग का हो सकता है।
शकरकंदी के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उत्तम होती है।
मिट्टी Soil: शकरकंदी विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती है। रेतीली से लेकर दोमट मिट्टी में इसे अच्छी उपज प्राप्त होती है, लेकिन जल निकास वाली, उपजाऊ मिट्टी इसके लिए सबसे उपयुक्त होती है।
प्रमुख किस्में Major varieties:
भूमि की तैयारी Land Preparation: खेती के लिए खेत को 3-4 बार हल चलाकर भुरभुरी स्थिति में लाना चाहिए। इसमें से खरपतवार को हटाकर खेत को समतल बनाएं।
बुवाई sowing:
नर्सरी की तैयारी: शकरकंदी की कटिंग और कंदों की नर्सरी तैयार कर, समय पर खेत में स्थानांतरण करें। अंकुरण क्षमता बढ़ाने के लिए कंदों को सल्फ्यूरिक एसिड के घोल में भिगोना लाभकारी होता है।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन Manure and Fertilizer Management:
फसल चक्र Crop rotation: शकरकंदी को चावल के साथ फसल चक्र में प्रयोग किया जा सकता है। सिंचित क्षेत्रों में चावल की कटाई के बाद इसे दिसंबर या जनवरी में बो सकते हैं।
जल प्रबंधन: प्रारंभिक 10 दिनों में 7-10 दिनों के अंतर पर सिंचाई करें। कटाई से तीन सप्ताह पूर्व सिंचाई रोक दें।
फसल प्रबंधन: खरपतवार नियंत्रण के लिए बोने के बाद मेट्रिबुज़िन या अलाच्लोर का छिड़काव करें। 45 दिनों के बाद निराई-गुड़ाई भी लाभकारी होती है।
रोग निवारण और कीट नियंत्रण Disease prevention and pest control:
उपज: शकरकंदी की फसल 120 दिनों में पक जाती है। इसकी उपज सामान्यतः 100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
भंडारण: शकरकंदी की खुदाई के बाद उचित भंडारण के लिए 8-10% नमीं का ध्यान रखें। ज्यादा नमीं से फफूंद लग सकती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है।