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शकरकंदी का वैज्ञानिक नाम Ipomoea batatas है, और इसका मुख्य उद्देश्य इसके मीठे और स्टार्चयुक्त कंदों की खेती करना है। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी मानी जाती है, क्योंकि इसमें बीटा-कैरोटीन और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं। शकरकंदी बेलदार पौधा होता है, जिसके पत्ते दिल के आकार या पंजे की आकृति के होते हैं। इसकी जड़ें कई रंगों में पाई जाती हैं जैसे बैंगनी, भूरी, सफेद, और इसका गूदा पीले, नारंगी, सफेद या बैंगनी रंग का हो सकता है।

जलवायु climate:

शकरकंदी के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उत्तम होती है।

  • तापमान: 26-30°C के बीच का तापमान सबसे अनुकूल है।
  • जल की आवश्यकता: इसके लिए सालाना 750-1200 मिमी. वर्षा आवश्यक होती है।

मिट्टी Soil: शकरकंदी विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती है। रेतीली से लेकर दोमट मिट्टी में इसे अच्छी उपज प्राप्त होती है, लेकिन जल निकास वाली, उपजाऊ मिट्टी इसके लिए सबसे उपयुक्त होती है।

  • पीएच मान: 5.8 से 6.7 के बीच पीएच सबसे अच्छा है।

प्रमुख किस्में Major varieties:

  1. पंजाब शकरकंदी-21: 145 दिनों में तैयार होती है। इसका गूदा सफेद और औसत उपज 75 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  2. वर्षा: महाराष्ट्र में वर्षा ऋतु के लिए उपयुक्त और लगभग 62.5 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज देती है।
  3. कोकण अश्विनी: महाराष्ट्र के लिए उपयुक्त, कम समय में अधिक उत्पादन देती है।
  4. श्री अरुण: जल्दी तैयार होने वाली किस्म है, इसका औसत उत्पादन 83-116 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  5. श्री कनाका: नारंगी गूदे वाली किस्म है, जिसकी उपज 41-62.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
  6. श्री वरुण: 90-100 दिनों में तैयार होती है, और इसकी उपज 80-100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

भूमि की तैयारी Land Preparation: खेती के लिए खेत को 3-4 बार हल चलाकर भुरभुरी स्थिति में लाना चाहिए। इसमें से खरपतवार को हटाकर खेत को समतल बनाएं।

बुवाई sowing:

  • समय: बेलों की बुवाई अप्रैल से जुलाई तक की जा सकती है। नर्सरी में कंदों की बुवाई जनवरी-फरवरी में करें।
  • विकल्प: पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेमी. और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी. रखें।
  • बीज दर: 25,000-30,000 कटिंग या 280-320 कि.ग्रा. कंद प्रति एकड़ पर्याप्त होते हैं।

नर्सरी की तैयारी: शकरकंदी की कटिंग और कंदों की नर्सरी तैयार कर, समय पर खेत में स्थानांतरण करें। अंकुरण क्षमता बढ़ाने के लिए कंदों को सल्फ्यूरिक एसिड के घोल में भिगोना लाभकारी होता है।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन Manure and Fertilizer Management:

  • जैविक खाद: प्रति एकड़ 100 क्विंटल सड़ी हुई खाद डालें।
  • उर्वरक: नाइट्रोजन (30 कि.ग्रा.), पोटेशियम (20 कि.ग्रा.), फॉस्फोरस (25 कि.ग्रा.) का प्रयोग करें। बुवाई के समय आधी मात्रा और शेष पांच सप्ताह बाद डालें।

फसल चक्र Crop rotation: शकरकंदी को चावल के साथ फसल चक्र में प्रयोग किया जा सकता है। सिंचित क्षेत्रों में चावल की कटाई के बाद इसे दिसंबर या जनवरी में बो सकते हैं।

जल प्रबंधन: प्रारंभिक 10 दिनों में 7-10 दिनों के अंतर पर सिंचाई करें। कटाई से तीन सप्ताह पूर्व सिंचाई रोक दें।

फसल प्रबंधन: खरपतवार नियंत्रण के लिए बोने के बाद मेट्रिबुज़िन या अलाच्लोर का छिड़काव करें। 45 दिनों के बाद निराई-गुड़ाई भी लाभकारी होती है।

रोग निवारण और कीट नियंत्रण Disease prevention and pest control:

  • काले धब्बे: मैनकोज़ेब का 30 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • जड़ गलन: मैनकोज़ेब या कॉपर ऑक्सी-क्लोराइड का छिड़काव करें।
  • वीविल कीट: रोगोर का 200 मि.ली. प्रति एकड़ छिड़काव करें।

उपज: शकरकंदी की फसल 120 दिनों में पक जाती है। इसकी उपज सामान्यतः 100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

भंडारण: शकरकंदी की खुदाई के बाद उचित भंडारण के लिए 8-10% नमीं का ध्यान रखें। ज्यादा नमीं से फफूंद लग सकती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है।