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जलवायु / तापमान climate/temperature:

  • मूंग की फसल के लिए नम एवं गर्म जलवायु की आवश्यकता है।
  • इसकी खेती वर्षा ऋतु में की जा सकती है।
  • मूंग की फसल के लिए 75-90 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं।
  • वृद्धि एवं विकास के लिए 25 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त है।
  • पुष्प अंकुरित होने के दौरान बारिश से उपज प्रभावित होती है।

फसल की जलमांग Crop water demand:

  • मूंग की फसल के लिए 600 से 720 मिली पानी की आवश्यकता होती है।

मिट्टी Soil:

  • मूंग की फसल के लिए दोमट या बलुई मिट्टी जिसमें जल का निकास अच्छा हो, अधिक उपयुक्त होती है।
  • क्षारीय मिट्टी मूंग की फसल के लिए बेहतर नहीं हैं।

पी.एच. मिट्टी P.H. Soil:

  • मूंग के लिए आदर्श पी.एच. 6 से 7.5 होना चाहिए।
  • यदि भूमि का पीएच 7.5 से अधिक है, तो जिप्सम का प्रयोग करें।
  • यदि भूमि का पीएच 6 से कम है, तो चूने का प्रयोग करें।

प्रमुख किस्में Major varieties:

मूंग की उपयुक्त किस्में निम्नलिखित हैं:

  • उत्कर्षा: यह फसल अधिक उत्पादन और हरे दाने वाली किस्म है। यह 70-75 दिन में तैयार हो जाती है। अनुमानित पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  • एकेएम-9911: यह अधिक उत्पादन और मोटे हरे दाने वाली किस्म है। यह 70-80 दिन में तैयार हो जाती है। अनुमानित पैदावार 4.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  • वैभव: यह अधिक उत्पादन और हरे दाने वाली किस्म है। यह 75-80 दिन में तैयार हो जाती है। अनुमानित पैदावार 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  • पीकेव्ही एकेएम-4: यह अधिक उत्पादन और हरे दाने वाली किस्म है। यह 70-75 दिन में तैयार हो जाती है। अनुमानित पैदावार 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  • पूसा विशाल: इस फसल के पौधे मध्यम आकार के हैं, फली का साइज अधिक है, और दाना मध्यम चमकीला हरा होता है। यह 60-65 दिन में तैयार हो जाती है। अनुमानित पैदावार 12-14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
  • टोम्बे जवाहर (टी.जे.एम.-3): यह ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों के लिए उपयुक्त है, फलियाँ गुच्छों में लगती हैं, और एक फली में 8-11 दाने होते हैं। यह 60-70 दिन में तैयार हो जाती है। अनुमानित पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

भूमि की तैयारी land preparation:

  • मूंग की फसल हेतु गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए।
  • वर्षा प्रारंभ होते ही 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खरपतवार रहित करने के उपरांत खेत में पाटा चलाकर समतल करना चाहिए।
  • मूंग की खेती के लिए रबी फसलों के कटने के तुरंत बाद जुताई कर 4-5 दिन छोड़कर पलेवा करना चाहिए।
  • पलेवा के बाद 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा बनाना चाहिए।

फसल की बुवाई Crop sowing:

  • खरीफ मूंग की बुवाई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह है।
  • मूंग की फसल को 20 मार्च तक बोनी कर देना चाहिए।
  • बोनी में विलंब होने पर फूल आते समय तापमान वृद्धि के कारण फलियाँ कम बनती हैं या बनती ही नहीं हैं, जिससे इसकी उपज प्रभावित होती है।

बीजदर Seed rate:

  • खरीफ में कतार विधि से बुवाई हेतु 20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
  • बसंत या ग्रीष्म ऋतु में बुवाई हेतु 25-30 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है।

खाद एवं उर्वरक:

  • नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश उर्वरकों की पूरी मात्रा बुवाई के समय 5-10 सेमी गहरी कूड में आधार खाद के रूप में देना चाहिए।
  • यह फसल लेग्युमिनेसी कुल की फसल है, जिसमें गांठों में रायजोबियम जीवाणु पाया जाता है।
  • मूंग कम खाद और उर्वरक चाहने वाली फसल है।

जल प्रबंधन:

  • प्रायः वर्षा ऋतु में मूंग की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  • फसल पकने के 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए।
  • वर्षा के मौसम में अधिक वर्षा होने पर अथवा खेत में पानी का भराव होने पर फालतू पानी को खेत से निकालते रहना चाहिए, जिससे मृदा में वायु संचार बना रहता है।
  • एक वर्षा के बाद दूसरी वर्षा होने के बीच लंबा अंतराल होने पर या नमी की कमी होने पर फलियाँ बनते समय एक हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है।

कटाई:

  • मूंग की फसल 60-70 दिन में पक जाती है, अर्थात् जुलाई में बोई गई फसल सितंबर तथा अक्टूबर के पहले सप्ताह तक कट जाती है। फरवरी-मार्च में बोई गई फसल मई में तैयार हो जाती है।
  • जब फलियाँ पककर हल्के भूरे रंग की या काली हो जाती हैं, तब कटाई योग्य हो जाती हैं।
  • समय पर मूंग की कटाई नहीं करने पर पकी हुई फलियाँ चटकने लगती हैं।
  • अपरिपक्व अवस्था में फलियों की कटाई करने से दानों की उपज एवं गुणवत्ता दोनों खराब हो जाते हैं।

फसल चिकित्सा एवं रोग निवारण Crop treatment and disease prevention:

बीज जनित रोग

  • विवरण: अंकुरित पौधों की जड़ों को प्रभावित करता है। यह बीज से उत्पन्न होने वाले रोग हैं।
  • लक्षण: पौधे सूखकर नष्ट होने लगते हैं तथा फसल की वृद्धि को प्रभावित करते हैं।
  • रोकथाम: रोगग्रस्त पौधों को स्वस्थ पौधों से अलग कर देना चाहिए।

माहु रोग

  • विवरण: यह रोग फसल की प्रत्येक अवस्था को प्रभावित करता है, और इसका प्रभाव पत्तियों पर दिखाई देता है।
  • लक्षण: माहु पोषक तत्व को नष्ट करते हैं और पत्तियों से रस चूस लेते हैं। पौधे की पत्तियों, तनों और फली के आवरण पर काले रंग दिखाई देते हैं।
  • रोकथाम: रोगग्रस्त पौधों को नष्ट कर देना चाहिए। समय से पूर्व बुवाई करनी चाहिए।

उकठा रोग

  • विवरण: यह रोग 30 डिग्री सेल्सियस में लगने की संभावना अधिक होती है।
  • लक्षण: रोगग्रस्त पौधों की जड़े कमजोर हो जाती हैं, और फसल की विकास दर धीमी हो जाती है।
  • रोकथाम: समय पर बुवाई और प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करना चाहिए।

फली छेदक रोग

  • विवरण: जब फसल पक जाती है, तब यह कीट पौधों को हानि पहुंचाता है। फली लगने की अवस्था में यह रोग फसल को प्रभावित करता है।
  • लक्षण: प्रत्यक्ष रूप से यह रोग फलियों को प्रभावित करता है।
  • रोकथाम: उचित फसल चक्र अपनाएं। नीम का अर्क बनाकर खेत में छिड़काव करें।

रतुआ रोग

  • विवरण: अधिक नमी होने पर इस रोग के बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है।
  • लक्षण: यह रोग फलियों और तनों पर भी दिखाई देते हैं। रोगग्रस्त हिस्सों पर गहरे लाल, भूरे रंग के दाग दिखाई पड़ते हैं।
  • रोकथाम: रोगग्रस्त पौधे को पृथक कर नष्ट कर दें।

उत्पादन:

  • कुल फसल की मात्रा: 4.8-6 क्विंटल प्रति एकड़।

भंडारण:

  • मूंग की खेती उन्नत तरीके से करने पर 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसत उपज प्राप्त की जा सकती है।
  • भंडारण करने से पूर्व दानों को अच्छी तरह धूप में सुखाने के उपरांत ही, जब उसमें नमी की मात्रा 8-10 प्रतिशत रहे, तभी वह भंडारण के लिए योग्य रहती है।

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