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मूली एक खाद्य जड़ वाली सब्जी है जो क्रूसीफैरी परिवार से संबंधित है। इसे उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह एक तेजी से बढ़ने वाली फसल है और सालभर उगाई जा सकती है। मूली की जड़ें सफेद से लेकर लाल तक विभिन्न रंगों की होती हैं। पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब और असम इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। मूली विटामिन बी6, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीशियम और रिबोफ्लेविन का अच्छा स्रोत है, साथ ही इसमें एसकॉर्बिक एसिड, फॉलिक एसिड और पोटैशियम भी प्रचुर मात्रा में होता है।

जलवायु / तापमान Climate/temperature:

मूली की फसल हल्की जलवायु में उगाई जा सकती है, लेकिन ठंडी जलवायु में बेहतर परिणाम देती है। इसका आदर्श तापमान 18°C से 25°C के बीच होता है। अत्यधिक गर्मी या पाला फसल को नुकसान पहुंचा सकता है।

जल की मांग Water demand:

मूली की फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। गर्मियों में हर 6-7 दिन और सर्दियों में हर 10-12 दिन पर सिंचाई करनी चाहिए। अतिरिक्त सिंचाई से बचें क्योंकि इससे जड़ें विकृत हो सकती हैं।

मिट्टी Soil: यह फसल ढीली, बलुई दोमट मिट्टी में सर्वोत्तम परिणाम देती है। भारी और कसी हुई मिट्टी से जड़ों का मुड़ना हो सकता है। मिट्टी का pH स्तर 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए।

मुख्य किस्में Main varieties:

  • जापानी व्हाइट: यह किस्म नवंबर-दिसंबर में बोने के लिए उपयुक्त है। जड़ें बेलनाकार और सफेद होती हैं। इसका उत्पादन लगभग 160 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।
  • पुसा चेटकी: अप्रैल से अगस्त तक बोई जाती है और जल्दी पकने वाली किस्म है। इसका उत्पादन लगभग 105 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।
  • पंजाब पसंद: जल्दी पकने वाली किस्म, 45 दिनों में तैयार होती है। इसका मुख्य उत्पादन 215 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।

बुवाई का समय Time of sowing:

  • पुसा हिमानी: जनवरी-फरवरी में बोई जाती है।
  • पंजाब पसंद: मार्च के दूसरे हिस्से में, लेकिन इसे अप्रैल से अगस्त तक भी बोया जा सकता है।
  • जापानी व्हाइट: नवंबर-दिसंबर का समय सर्वोत्तम है।

खेत की तैयारी: खेत को अच्छी तरह से जोतकर, खरपतवार और मिट्टी के ढेले निकाल दें। प्रति एकड़ 5-10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं। यह सुनिश्चित करें कि मिट्टी में कोई अधपकी खाद न हो।

फसल चक्र: मूली की फसल का चक्र बुवाई के 25 से 60 दिनों के बीच पूरा होता है, जो किस्म के अनुसार अलग हो सकता है।

जल प्रबंधन: पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें। गर्मियों में हर 6-7 दिन और सर्दियों में हर 10-12 दिन पर सिंचाई करें। फसल की ताजगी बनाए रखने के लिए कटाई से पहले हल्की सिंचाई करें।

खरपतवार प्रबंधन: बुवाई के 2-3 सप्ताह बाद खरपतवार हटाने के लिए हाथ से निराई करें। निराई के बाद क्यारियों की मिट्टी ऊंची कर दें।

कटाई: मूली की कटाई बुवाई के 25-60 दिनों बाद की जाती है, जब जड़ें पूरी तरह से विकसित हो जाती हैं। जड़ों को हाथ से खींचकर काटा जाता है। कटाई के बाद जड़ों को धोकर आकार के अनुसार छांटा जाता है।

रोग एवं रोकथाम:

  • विल्ट: पत्तियों पर पीले धब्बे बनते हैं। रोकथाम के लिए 2 ग्राम मैनकोज़ेब और 1 ग्राम कार्बेन्डाज़िम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • ब्लैक ब्लाइट: इस रोग को रोकने के लिए 1 मि.ली. मालाथियॉन 50 ईसी प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।