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जलवायु / तापमान Climate/Temperature:

  • धान की फसल खरीफ मौसम में बोई जाती है, और इसके लिए गर्म और नम जलवायु सबसे उपयुक्त होती है।
  • धान के लिए उपयुक्त तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस होता है। अधिकतम 38 डिग्री सेल्सियस तक यह फसल सहन कर सकती है।
  • फूटने और बीज अंकुरण के समय 23-28 डिग्री सेल्सियस तापमान सही होता है।

जल मांग Water Demand:

  • धान की फसल को ज्यादा पानी की जरूरत होती है, विशेष रूप से शुरुआती चरण में।
  • फसल के पकने के बाद जल की मांग कम हो जाती है।

मिट्टी Soil:

  • मध्यम काली या दोमट मिट्टी धान की खेती के लिए उपयुक्त है।
  • मिट्टी का पी.एच. स्तर 6-7 के बीच होना चाहिए।

प्रमुख किस्में Major varieties:

  • विभिन्न क्षेत्रीय किस्में जैसे 'साकेत-4', 'गोविन्द', 'पूसा 169', और 'बासमती 370' अधिक उपज देने वाली हैं।

बुवाई और उचित समय Sowing and proper time:

  • धान की बुवाई का उपयुक्त समय जून मध्य से जुलाई अंत तक होता है।
  • कतारों में बीज बोने या रोपाई विधि से धान की बुवाई की जाती है।

खेत की तैयारी Field Preparation:

  • खेत की गहरी जुताई वर्षा से पहले करें और फास्फेट व गोबर की खाद का प्रयोग करें।
  • खेत को समतल करने के लिए रोटावेटर का उपयोग किया जा सकता है।

फसल चक्र Crop rotation:

  • धान और गेहूं के साथ मूंग की फसल उगाई जा सकती है।
  • धान के बाद सब्जी की खेती जैसे टमाटर, गाजर, आलू की खेती की जा सकती है।

जल प्रबंधन Water management:

  • धान की फसल को 750-850 मिमी जल की आवश्यकता होती है।
  • बुवाई से लेकर कल्ले निकलने तक पानी की आवश्यकता अधिक होती है।

खरपतवार प्रबंधन Weed Management:

  • खरपतवार को रोकने के लिए उचित निराई-गुड़ाई करें और समय पर कीटनाशक का छिड़काव करें।

कटाई Harvesting:

  • फसल की बालियाँ पीली होने लगें तब कटाई के लिए उपयुक्त समय होता है।
  • 110-150 दिन में फसल तैयार हो जाती है।

रोग और रोग निवारणDiseases and disease prevention:

  1. झुलसा रोग: यह पत्तियों, तनों और बालियों को प्रभावित करता है। रोग प्रतिरोधी बीजों का उपयोग और बीजोपचार जैसे ट्रायसायक्लाजोल या कार्बेन्डाजिम से करें।
  2. खैरा रोग: जिंक की कमी के कारण होता है। इसे रोकने के लिए जिंक सल्फेट का उपयोग करें।
  3. जीवाणु पत्ती झुलसा: यह रोग अधिक पानी वाले क्षेत्रों में फैलता है। बीजों का कार्बेन्डाजिम से उपचार करें।
  4. झोंका रोग: पौधों की पत्तियों पर भूरे-हरे धब्बे होते हैं। उर्वरक का सही मात्रा में उपयोग और समय पर रोपाई से इसका निवारण करें।
  5. सफेद लट: यह पौधों की जड़ों को प्रभावित करता है। गोबर की खाद और कीटनाशकों का प्रयोग करें।
  6. भूरी चित्ती: यह रोग पत्तियों पर भूरे धब्बे बनाता है।