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जलवायु / तापमान: चने की खेती के लिए सामान्यतः 20-25 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है।

जल की मांग: चने की फसल को सिंचाई की आवश्यकता होती है, विशेषकर फूल आने और फलियाँ बनने के समय।

भूमि: चने के लिए दोमट या भारी दोमट, मार एवं पडुआ भूमि जहाँ पानी के निकास का उचित प्रबन्ध हो, उपयुक्त होती है।

भूमि की तैयारी Land Preparation

पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से 6 इंच गहरी व दो जुताइयां देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करके पाटा लगाकर खेत को तैयार कर लेना चाहिए।

प्रमुख प्रजातियाँ: चने की विभिन्न प्रजातियाँ हैं, जिनमें प्रमुख हैं।

  1. गुजरात चना-4 (उत्पादन क्षमता: 20-25 कु./हे., पकने की अवधि: 120-130 दिन)
  2. अवरोधी (उत्पादन क्षमता: 25-30 कु./हे., पकने की अवधि: 145-150 दिन)
  3. पूसा-256 (उत्पादन क्षमता: 25-30 कु./हे., पकने की अवधि: 135-140 दिन)
  4. के.डब्लू.आर.-108 (उत्पादन क्षमता: 25-30 कु./हे., पकने की अवधि: 130-135 दिन)

फसलों की बुआई का उचित समय:

असिंचित दशा में चने की बुआई अक्टूबर के द्वितीय अथवा तृतीय सप्ताह तक अवश्यक कर देनी चाहिए। सिंचित दशा में बुआई नवम्बर के द्वितीय सप्ताह तक तथा पछैती बुआई दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है।

फसल की तैयारी: बुआई हल के पीछें कूंड़ों में 6-8 सेमी० की गहराई पर करनी चाहिए।

फसल चक्र: चने की फसल के बाद ग्रीष्मकालीन फसलों का चयन किया जा सकता है।

जल प्रबंधन: प्रथम सिंचाई आवश्यकतानुसार बुआई के 45-60 दिन बाद (फूल आने के पहले) तथा दूसरी फलियों में दाना बनते समय की जानी चाहिए।

खरपतवार प्रबंधन: खरपतवार नियंत्रण हेतु फ्लूक्लोरैलीन 45 प्रतिशत इ.सी. की 2.2 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर का प्रयोग किया जा सकता है।

कटाई: जब फलियाँ पक जायें तो कटाई कर मड़ाई कर लेना चाहिए।

रोग एवं रोग निवारण: चने में प्रमुख रोग हैं जड़ सड़न और उकठा। जड़ सड़न की रोकथाम के लिए बीजों का उपचार और सही समय पर बुआई आवश्यक है।